झंझावात
झंझावात कितना प्रबल है!
दिशाएँ हो गईं निस्तब्ध,
नभ हो गया निःशब्द,
सरस मधुर पुरवाई अपना दिखा गई भुजबल है।
झंझावात कितना प्रबल है!
शाखें हैं टूटी-टूटी,
सुमनों की किस्मत रूठी,
टप-टप बूँदों ने बेध दिया हर पत्ती का अंतस्थल है!
झंझावात कितना प्रबल है!
पंछी तिनके अब जुटा रहे,
चोटिल भावों को मिटा रहे,
दिन बीत गया अब रात हुई, यह जीवन नहीं सरल है!
झंझावात कितना प्रबल है!